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अखिल भारतीय सेवाओं की आलोचना
(Criticism of All service)
CSIACADEMY"
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अखिल भारतीय सेवाओं की आलोचना
(Criticism of All service)
(Criticism of All service)
इन सेवाओं की समाप्ति के लिए निम्न तर्क दिए जाते हैं
1.संघात्मकता के विरुद्ध ।
यह सेवाएं संगीत सिद्धांत के विरुद्ध है क्योंकि इससे राज्यों की प्रशासनिक सहायता सीमित हो जाती है इसी आधार पर तमिलनाडु सरकार द्वारा वर्ष 1969 में गठित राजमन्नार समिति ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा को समाप्त करने की सिफारिश की थी
2.मंत्रियों के अधिकारों पर रोक।
केंद्र के अधीन यह लोक सेवाएं राज्यों में मंत्रियों पर अपनी योग्यता बौद्धिकता और अधिकार संपन्न तक उठते हैं सिद्धांत आता है यह लोक सेवक मंत्री गण के अधीन मंत्री गण के अधीन होते हैं लेकिन व्यवहार में इसका उल्टा स्वरूप देखा जाता है
3.राज्य सेवाएं हतोत्साहित होती हैं ।
अखिल भारतीय सेवाएं अधिकार वेतन आदि में राज्य सेवाओं से बेहतर स्थिति में होते हैं और राज्य के लोक सेवकों को उनके अधीन रहकर काम करना होता है आईएएस आईपीएस राज्य के डिप्टी कलेक्टर डीएसपी आदि को निम्न दृष्टि से देखते हैं प्रणाम तहे राज्यसेवा हो जाती हैं इसका एक कारण उनकी पदोन्नति में होने वाली कमी भी है
4.वित्तीय भार ।
अखिल भारतीय सेवाओं के लोक सेवकों के वेतन सुख-सुविधाओं पर राज्य की संचित निधि से भुगतान करना होता है इस के वेतन भत्ते वेतनमान भारतीय सरकार के अनुरूप अधिक होते हैं
5.स्थानीय ज्ञान का अभाव ।
यह लोक सेवक राज्य के बाहर के होते हैं अतः इन्हें स्थानीय समस्याओं भाषाओं संस्कृतियों और पैसों की जानकारी नहीं होती है इसलिए वे बेहतर प्रशासन नहीं कर सकते उन्हें राज्य के प्रति संवेदनशीलता और निष्ठा का अभाव होता है
6.विशेषज्ञता की कमी ।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य सामान्य होते हैं उनमें विशेषज्ञता का अभाव होता है आधुनिक युग की विशिष्ट समस्याओं से निपटने में उपयोगी नहीं रहे प्रशासनिक सुधार आयोग 1966 में भी व्यवसाय सेवाओं में इन्हें बाहर करने का सुझाव दिया था
7.असमान प्रतिनिधित्व ।
इन सेवाओं में बिहार उत्तर प्रदेश पंजाब तमिलनाडु आंध्र प्रदेश आदि राज्यों का एकाधिकार जैसा है इससे यह सेवाएं राष्ट्रीय एकता के स्थान पर क्षेत्रीय प्रभुत्व में वृद्धि करने का माध्यम बन गई
8.माटी पुत्र का सिद्धांत।
अखिल भारतीय सेवाओं में राज्य लोकसेवा के पदों में कमी करके स्थानीय माटी पुत्रों के रोजगार छीन लिया है इसके चलते स्थानीय लोगों में क्षेत्रवाद की भावना बलवती हुई है
9.औपनिवेशिक विरासत।
भारतीय साम्राज्य का "स्टील फ्रेम" थी इन्होंने जनता के ऊपर शासन किया और राज्य हित का पोषण किया अब स्वतंत्र भारत को लोकतांत्रिक जरूरतों में उपर्युक्त नहीं बैठते
10.जनता से दूरी।
यह लोकसेवक अपने को एक पृथक और श्रेष्ठ अभिजन वर्ग का सदस्य मानते हैं जनता से मिलना अपने पद की गरिमा के विरुद्ध समझते हैं लोकसेवक लोकतंत्र में इनकी यह सोच शासन और जनता के मध्य दूरी को बढ़ा देती है जिससे योजनाओं के लिए वार्षिक पुनर्निवेश तथा क्रियान्वयन में अपेक्षित सहयोग दोनों प्राप्त नहीं हो पाते
CSIACADEMY.EDUयह सेवाएं संगीत सिद्धांत के विरुद्ध है क्योंकि इससे राज्यों की प्रशासनिक सहायता सीमित हो जाती है इसी आधार पर तमिलनाडु सरकार द्वारा वर्ष 1969 में गठित राजमन्नार समिति ने अपनी रिपोर्ट में भारतीय प्रशासनिक सेवा और भारतीय पुलिस सेवा को समाप्त करने की सिफारिश की थी
2.मंत्रियों के अधिकारों पर रोक।
केंद्र के अधीन यह लोक सेवाएं राज्यों में मंत्रियों पर अपनी योग्यता बौद्धिकता और अधिकार संपन्न तक उठते हैं सिद्धांत आता है यह लोक सेवक मंत्री गण के अधीन मंत्री गण के अधीन होते हैं लेकिन व्यवहार में इसका उल्टा स्वरूप देखा जाता है
3.राज्य सेवाएं हतोत्साहित होती हैं ।
अखिल भारतीय सेवाएं अधिकार वेतन आदि में राज्य सेवाओं से बेहतर स्थिति में होते हैं और राज्य के लोक सेवकों को उनके अधीन रहकर काम करना होता है आईएएस आईपीएस राज्य के डिप्टी कलेक्टर डीएसपी आदि को निम्न दृष्टि से देखते हैं प्रणाम तहे राज्यसेवा हो जाती हैं इसका एक कारण उनकी पदोन्नति में होने वाली कमी भी है
4.वित्तीय भार ।
अखिल भारतीय सेवाओं के लोक सेवकों के वेतन सुख-सुविधाओं पर राज्य की संचित निधि से भुगतान करना होता है इस के वेतन भत्ते वेतनमान भारतीय सरकार के अनुरूप अधिक होते हैं
5.स्थानीय ज्ञान का अभाव ।
यह लोक सेवक राज्य के बाहर के होते हैं अतः इन्हें स्थानीय समस्याओं भाषाओं संस्कृतियों और पैसों की जानकारी नहीं होती है इसलिए वे बेहतर प्रशासन नहीं कर सकते उन्हें राज्य के प्रति संवेदनशीलता और निष्ठा का अभाव होता है
6.विशेषज्ञता की कमी ।
भारतीय प्रशासनिक सेवा के सदस्य सामान्य होते हैं उनमें विशेषज्ञता का अभाव होता है आधुनिक युग की विशिष्ट समस्याओं से निपटने में उपयोगी नहीं रहे प्रशासनिक सुधार आयोग 1966 में भी व्यवसाय सेवाओं में इन्हें बाहर करने का सुझाव दिया था
7.असमान प्रतिनिधित्व ।
इन सेवाओं में बिहार उत्तर प्रदेश पंजाब तमिलनाडु आंध्र प्रदेश आदि राज्यों का एकाधिकार जैसा है इससे यह सेवाएं राष्ट्रीय एकता के स्थान पर क्षेत्रीय प्रभुत्व में वृद्धि करने का माध्यम बन गई
8.माटी पुत्र का सिद्धांत।
अखिल भारतीय सेवाओं में राज्य लोकसेवा के पदों में कमी करके स्थानीय माटी पुत्रों के रोजगार छीन लिया है इसके चलते स्थानीय लोगों में क्षेत्रवाद की भावना बलवती हुई है
9.औपनिवेशिक विरासत।
भारतीय साम्राज्य का "स्टील फ्रेम" थी इन्होंने जनता के ऊपर शासन किया और राज्य हित का पोषण किया अब स्वतंत्र भारत को लोकतांत्रिक जरूरतों में उपर्युक्त नहीं बैठते
10.जनता से दूरी।
यह लोकसेवक अपने को एक पृथक और श्रेष्ठ अभिजन वर्ग का सदस्य मानते हैं जनता से मिलना अपने पद की गरिमा के विरुद्ध समझते हैं लोकसेवक लोकतंत्र में इनकी यह सोच शासन और जनता के मध्य दूरी को बढ़ा देती है जिससे योजनाओं के लिए वार्षिक पुनर्निवेश तथा क्रियान्वयन में अपेक्षित सहयोग दोनों प्राप्त नहीं हो पाते
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