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आंग्ल-मैसूर संबंध (Anglo-Mysore Relations)

प्रथम आंग्ल-मैसूर युद्ध (1767 - 69 ई.) - First Anglo-Mysore War (1767-69)

कारण : (क) अंग्रेजो की महत्वाकांक्षाएँ
(ख) कर्नाटक के नवाब मुहम्मद अली व हैदरअली में शत्रुता 
(ग) मालाबार के नायक सामन्तो पर हैदरअली का नियंत्रण 
(घ) हैदरअली का अंग्रेजो की मित्रता का प्रस्ताव न मानना।
परिणाम : मद्रास की संधि, 1769 ई. - हैदरअली व ईस्ट इंडिया कम्पनी दोनों पक्षों ने एक दूसरे के विजित प्रदेश तथा युद्धबंदी लौटा दिए। दोनों पक्षों ने एक-दूसरे पर किसी भी बाहरी शक्ति के आक्रमण के समय सहायता देने का वचन दिया।

दितीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1780 - 84 ) - Second Anglo-Mysore War (1780-84)

कारण : 
(क) अंग्रेजो द्वारा संधि की शर्त का पालन न करना 
(ख) अंग्रेजो का माहे पर अधिकार 
(ग) हैदरअली द्वारा त्रिगुट का निर्माण 
(घ) हैदरअली के फ्राँसीसियो के साथ सम्ब्न्ध ।
परिणाम : मंगलौर की संधि, 1784 ई. - टीपू व अंग्रेज । टीपू को मैसूर राज्य में अंग्रेजो के व्यापारिक अधिकार को मानना पड़ा। अंग्रेजो ने आश्वासन दिया कि वे मैसूर के साथ मित्रता बनाये रखेंगे तथा संकट के समय उसकी मदद करेंगे।

तृतीय आंग्ल-मैसूर युद्ध (1790 - 92 ई.) - Third Anglo-Mysore War (1790-92)

कारण : (क) मंगलौर की संधि का अस्थायित्व 
(ख) टीपू का फ्रांसीसियों से सम्पर्क 
(ग) मराठों के भेजे पत्र में कार्नवालिस द्वारा टीपू को मित्रो की सूची में शामिल न करना।
परिणाम : श्रीरंगपटटनम की संधि, 1792 ई. - टीपू और अंग्रेज । इस संधि के अनुसार अंग्रेजो अर्थात कार्नवालिस को टीपू सुल्तान द्वारा अपना आधा राज्य तथा तीन करोड़ रूपये जुर्माने के रूप में दिए गए।

चतुर्थ आंग्ल-मैसूर युद्ध (1799 ई.) - Fourth Anglo-Mysore War (1799)

कारण : (क) टीपू का फ्रांसीसियों से सम्पर्क 
(ख) भारत पर नेपोलियन के आक्रमण का खतरा
(ग) वेलेजली की आक्रामक नीति
परिणाम : (क) टीपू के राज्य का विभाजन 
(ख) दक्षिण भारत पर अंग्रेजी प्रभुत्व तथा वेलेजली की प्रतिष्ठा में वृद्धि, टीपू की मृत्यु।

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