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उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता।#csiacademy |
1.नियुक्ति का तरीका।
2.कार्यकाल की सुरक्षा।
3.निश्चित सेवा शर्तें।
4.संचित निधि से व्यय।
5.न्यायाधीशों के आचरण पर बहस नहीं हो सकती।
6.सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर रोक।
7.अपनी अवमानना पर दंड देने की शक्ति।
8.अपना स्टाफ नियुक्ति की स्वतंत्रता।
9.इसके न्याय क्षेत्र में कटौती नहीं की जा सकती। 10.कार्यपालिका से पृथक।
भारतीय लोकतांत्रिक एवं राज पद्धति में उच्चतम न्यायालय को बहुत महत्वपूर्ण भूमिका प्रदान की गई है यह संघीय न्यायालय याचिका के लिए सर्वोच्च न्यायालय नागरिकों के लिए मूल अधिकारों का गारंटर है संविधान का अभिभावक है इस तरह इसे प्रदत्त कार्य करने के लिए प्रभावी स्वतंत्रता और अधिकार काफी अहम है यह अतिक्रमण दबाव और हस्तक्षेप से स्वतंत्र होने चाहिए इसे बिना डर या पक्षपात के न्याय देने की स्वतंत्रता होनी चाहिए संविधान ने उच्चतम न्यायालय की स्वतंत्रता और निष्पक्ष कार्यक्रम सुनिश्चित करने के लिए निम्नलिखित उपबंध किए हैं।
1.नियुक्ति का तरीका।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों की नियुक्ति राष्ट्रपति न्यायिक सदस्यों की सलाह से करता है यह व्यवस्था कार्यकारिणी के पक्षपात में कटौती करती है एवं सुनिश्चित करती है कि न्यायिक नियुक्ति राजनीति पर आधारित नहीं है।
2. कार्यकाल की सुरक्षा।
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों को कार्यकाल की सुरक्षा प्रदान की जाती है उन्हें संविधान में उल्लेखित प्रावधानों के जरिए सिर्फ राष्ट्रपति हटा सकता है इसका तात्पर्य है कि यद्यपि उनकी नियुक्ति राष्ट्रपति द्वारा होती है लेकिन उनका कार्यकाल उनकी दया पर निर्भर नहीं है यह इससे भी स्पष्ट होता है कि अब तक उच्चतम न्यायालय के किसी न्यायाधीश को हटाया नहीं गया हैं।
3. निश्चित सेवा शर्ते
उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों के वेतन भत्ते अवकाश विशेष अधिकार पेंशन का निर्धारण समय-समय पर संसद द्वारा किया जाता है उन्हें उनके लिए प्रतिकूल ढंग से निर्मित नहीं किया जा सकता शिवाय वित्तीय आपातकाल के दौरान इस तरह उनको प्राप्त सुविधाएं पूरे कार्यकाल तक रहती हैं।
4. संचित निधि से वह उच्चतम न्यायालय के न्यायाधीशों का वेतन एवं कार्य का लिए व भत्ते पेंशन एवं अन्य प्रशासनिक खर्च संचित निधि प्रभावित होते हैं अतः संसद द्वारा इन पर मतदान नहीं किया जा सकता।
5. न्यायाधीशों की आचरण पर बहस नहीं हो सकती।
मामलों के अतिरिक्त संविधान में न्यायाधीशों के आचरण पर संसद में या राज्य विधानमंडल में बहस पर प्रतिबंध लगाया गया।
6. सेवानिवृत्ति के बाद वकालत पर रोक।
सेवानिवृत्ति न्यायाधीशों को भारत में कहीं भी किसी न्यायालय या प्राधिकरण में कार्य करने की स्वतंत्रता नहीं है ऐसा यह सुनिश्चित करने के लिए किया गया है कि वह निर्णय देते समय भविष्य का ध्यान ना रखें।
7. अपनी अब मानना पर दंड देने की शक्ति।
उच्चतम न्यायालय उस व्यक्ति को दंडित कर सकता है जो उसकी अवमानना करें उसका इसका तात्पर्य है कि इसके कार्य एवं फैसले को किसी इकाई द्वारा आलोचना नहीं की जा सकती यह शक्ति उच्चतम न्यायालय को प्राप्त है कि वह अपने प्राधिकार मर्यादा और प्रतिष्ठा को बनाए रखें।
8. अपना स्टाफ नियुक्त करने की स्वतंत्रता।
भारत के मुख्य न्यायाधीश को बिना कार्यकारी के हस्तक्षेप के अधिकारियों एवं कर्मचारियों को नियुक्त करने का अधिकार है वह उनकी सेवा शर्तों को भी तय कर सकता है।
9. इसके न्याय क्षेत्र में कटौती नहीं की जा सकती।
संसद को उच्च न्यायालय के न्यायाधीश एवं शक्तियों में कटौती का अधिकार नहीं है संविधान में किस के न्याय क्षेत्र एवं विभिन्न कार्यों का उल्लेख है हालांकि संसद इन में वृद्धि कर सकती हैं।
10. कार्यपालिका से पृथक।
संविधान निर्देश देता है कि राज्य लोक सेवाओं के क्रियान्वयन के मसले पर कार्यपालिका को न्यायपालिका से अलग करें इसका मतलब कार्यकारिणी की न्याय शक्तियों को रखने का अधिकार नहीं है तदनुसार इसके कार्यान्वयन के उपरांत कार्यकारी अधिकारियों की न्यायिक प्रशासन में भूमिका समाप्त हो गई।
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